जलाके राख़ कर अब मेरे सब ख़यालों को,
ख़याल तेरा ही बस मेरे सर में रहे।
कशिश ये हुस्न-ए-बुतां जिससे मांग लाया है,
वही जमाल-ए-हकीकी मेरी नज़र में रहे।
तेरा ही ज़ोर रहे मेरे दस्तो बाज़ू में,
तेरी ही क़ुव्वते परवाज़ बालों पर में रहे।
मुझे दिखा दे तू शाहराए इश्क़ ऐ दोस्त,
कि सुबहो शाम मेरा हर कदम सफ़र में रहे।
_____ हाफ़िज़
ख़याल तेरा ही बस मेरे सर में रहे।
कशिश ये हुस्न-ए-बुतां जिससे मांग लाया है,
वही जमाल-ए-हकीकी मेरी नज़र में रहे।
तेरा ही ज़ोर रहे मेरे दस्तो बाज़ू में,
तेरी ही क़ुव्वते परवाज़ बालों पर में रहे।
मुझे दिखा दे तू शाहराए इश्क़ ऐ दोस्त,
कि सुबहो शाम मेरा हर कदम सफ़र में रहे।
_____ हाफ़िज़
"तेरा ही ज़ोर रहे मेरे दस्तो बाज़ू में,
ReplyDeleteतेरी ही क़ुव्वते परवाज़ बालों पर में रहे।"
हार्दिक शुभकामनाएं
ख़याल तेरा ही बस मेरे सर में रहे।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार . अत्यंत ही प्रसंशनीय
" बाज़ार के बिस्तर पर स्खलित ज्ञान कभी क्रांति का जनक नहीं हो सकता "
ReplyDeleteहिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में राज-समाज और जन की आवाज "जनोक्ति.कॉम "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . अपने राजनैतिक , सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक और मीडिया से जुडे आलेख , कविता , कहानियां , व्यंग आदि जनोक्ति पर पोस्ट करने के लिए नीचे दिए गये लिंक पर जाकर रजिस्टर करें . http://www.janokti.com/wp-login.php?action=register,
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