Thursday, April 29, 2010

शाहराए इश्क़

जलाके राख़ कर अब मेरे सब ख़यालों को,
ख़याल तेरा ही बस मेरे सर में रहे
कशिश ये हुस्न--बुतां जिससे मांग लाया है,
वही जमाल--हकीकी मेरी नज़र में रहे
तेरा ही ज़ोर रहे मेरे दस्तो बाज़ू में,
तेरी ही क़ुव्वते परवाज़ बालों पर में रहे
मुझे दिखा दे तू शाहराए इश्क़ दोस्त,
कि सुबहो शाम मेरा हर कदम सफ़र में रहे

_____ हाफ़िज़

3 comments:

  1. "तेरा ही ज़ोर रहे मेरे दस्तो बाज़ू में,
    तेरी ही क़ुव्वते परवाज़ बालों पर में रहे।"
    हार्दिक शुभकामनाएं

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  2. ख़याल तेरा ही बस मेरे सर में रहे।

    बहुत ही शानदार . अत्यंत ही प्रसंशनीय

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  3. " बाज़ार के बिस्तर पर स्खलित ज्ञान कभी क्रांति का जनक नहीं हो सकता "

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