Thursday, June 2, 2011

मौत

किसी शायर ने मौत के बारे में क्या खूब लिखा है:

ज़िन्दगी में दो मिनट कोई मेरे पास बैठा,
आज सब मेरे पास बैठे जा रहे थे
कोई तोहफा मिला आज तक मुझे,
आज फूल ही फूल दिए जा रहे थे
तरस गया मैं किसीके हाथ से दिए वो एक कपडे को,
और आज नए-नए कपडे ओढ़ाये जा रहे थे
दो कदम साथ चलने को तैयार था कोई,
और आज काफ़िला बनाकर जा रहे थे
आज पता चला की "मौत" इतनी हसीन होती है,
कमबख्त "हम" तो यूँही जिए जा रहे थे

Thursday, July 15, 2010

चल दिये



कुछ तो ख़ता हुई होगी हमसे,
जो वो हमें छोड़कर चल दिये.
उम्रभर साथ देने का वादा था,
बीच सफ़र में तनहा छोड़कर चल दिये.

जिसकी आरज़ू थी हमें सदियों से,
वो प्यार हमारा हमसे छीन गया.
वो कहते थे मुझसे मै पत्थरदिल हूँ,
और आज वो पत्थर का दिल भी तोड़कर चल दिए.

"अब से मुझे भूल जाना तुम."
बस यही आखरी मुलाक़ात के लफ्ज़ थे.
जाते जाते ये भी ना वो देख सके,
मेरे दिल में यादों के मेले छोड़कर चल दिये.

ऐ मौत तू क्या मारेगी मुझे,
मेरे सनम ने ही मुझे क़त्ल कर दिया.
दिल तोड़कर रूह छीन ली उन्होंने,
बस एक ज़िंदा लाश छोड़कर चल दिये.

_____ हाफ़िज़





Wednesday, June 9, 2010

मैं पल दो पल का शायिर हूँ

कल नयी पोंक्लें फूटेंगी,
कल नये फुल मुस्कायेंगे.
और नयी घांस के नए फर्श पर,
नये पाँव इठलायेंगे.
वो मेरे बीच नहीं आये,
मैं उनके बीच में क्यूँ आऊँ.
उनकी सुबहों और शामों का,
मैं एक भी लम्हा क्यूँ पाऊँ.
मैं पल दो पल का शायिर हूँ,
पल दो पल मेरी कहानी है.
पल दो पल मेरी हस्ती है,
पल दो पल मेरी जवानी है.


_____ फिल्म कभी कभी

तेरा हाथ, हाथ में हो अगर

तेरा हाथ, हाथ में हो अगर,
तो सफर ही असले हयात है.

मेरे हर कदम पे है मंज़िलें,
तेरा प्यार ग़र मरे साथ है.

मेरी बात का मेरी हमनफ़स,
तू जवाब दे कि ना दे मुझे,

तेरी एक चुप में जो है छुपी,
वो हज़ार बातों कि बात है.

मेरी ज़िंदगी का हर एक पल,
तेरे हुस्न से है जुड़ा हुआ.

तेरे होंठ थिरके तो सुबहें है,
तेरी ज़ुल्फ बिखरें तो रात है.

तेरा हाथ, हाथ में हो अगर,
तो सफर ही असले हयात है.


_____ फिल्म कभी कभी

Thursday, May 27, 2010

मौत तू एक कविता है

दोस्तों,
आप सभी के लिए १९७० की मशहूर फिल्म आनंद की ये दिल को छू लेनेवाली कविता पेश करता हूँ

मौत तू एक कविता है,
मुझसे एक कविता का वादा है, मिलेगी मुझको
डूबती नफ्जों में, जब नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिए, चाँद उफ़क तक पहुंचे
दिन अभी पाने में हो, रात किनारे के क़रीब.
ना अँधेरा ना उजाला हो, ना आधी रात ना दिन
जिस्म जब ख़त्म हो, और रूह को जब साँस आये
मुझसे एक कविता का वादा है, मिलेगी मुझको

झंकार

गुलशन-गुलशन फूल खिले हैं,
पर फूलों में महकार नहीं
जैसे गोरी के पाँव में पायल है,
पर पायल में झंकार नहीं

तेरे हुस्न ने.......

तेरे हुस्न ने मुझे,
दीवाना बना दिया
अपनों से दूर करके,
मुझे बेग़ाना बना दिया

दिल कभी फौलाद था मेरा,
तेरे इश्क ने पिघला दिया
मेरे दिल के जहान को,
तेरी चाहत ने हिला दिया

ग़मगीन अंदाज़ को मेरे,
तुने शायराना बना दिया
तन्हाइनुमा मिजाज़ को मेरे ,
तुने दोस्ताना बना दिया

कुछ सूझता ही नहीं मुझे,

सिवाय तेरे ख़यालों के
तेरी याद और ख़यालों ने,
इस दिल को आशियाना बना दिया

_____ हाफ़िज़