Thursday, May 27, 2010

मौत तू एक कविता है

दोस्तों,
आप सभी के लिए १९७० की मशहूर फिल्म आनंद की ये दिल को छू लेनेवाली कविता पेश करता हूँ

मौत तू एक कविता है,
मुझसे एक कविता का वादा है, मिलेगी मुझको
डूबती नफ्जों में, जब नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिए, चाँद उफ़क तक पहुंचे
दिन अभी पाने में हो, रात किनारे के क़रीब.
ना अँधेरा ना उजाला हो, ना आधी रात ना दिन
जिस्म जब ख़त्म हो, और रूह को जब साँस आये
मुझसे एक कविता का वादा है, मिलेगी मुझको

झंकार

गुलशन-गुलशन फूल खिले हैं,
पर फूलों में महकार नहीं
जैसे गोरी के पाँव में पायल है,
पर पायल में झंकार नहीं

तेरे हुस्न ने.......

तेरे हुस्न ने मुझे,
दीवाना बना दिया
अपनों से दूर करके,
मुझे बेग़ाना बना दिया

दिल कभी फौलाद था मेरा,
तेरे इश्क ने पिघला दिया
मेरे दिल के जहान को,
तेरी चाहत ने हिला दिया

ग़मगीन अंदाज़ को मेरे,
तुने शायराना बना दिया
तन्हाइनुमा मिजाज़ को मेरे ,
तुने दोस्ताना बना दिया

कुछ सूझता ही नहीं मुझे,

सिवाय तेरे ख़यालों के
तेरी याद और ख़यालों ने,
इस दिल को आशियाना बना दिया

_____ हाफ़िज़

अन्धा निशाना

ना शराब है ना नशा है,
सिर्फ प्यासा मैख़ाना हूँ मै
ना कोई राह ना मंज़िल,
एक अन्धा निशाना हूँ मै

______ हाफ़िज़

दर्दनाक शेर

दर्दनाक शेर बन चूका हूँ,
कभी हसीन ग़ज़ल था मै भी
खंडर बन के रह गया हूँ,
यूँ तो कभी महल था मै भी
_____ हाफ़िज़

हुस्न

तुम सामने बैठी रहो,
तुम्हारा हुस्न पीता रहूँ
मौत गयी जो दरमियाँ,
मरकर भी मैं जीता रहूँ

_____ हाफ़िज़

Wednesday, May 26, 2010

...... पिये जा

पिये जा

न कोई हमसफर है,
न कोई भी हमदम है।
सुनी-सुनी है ज़िन्दगी जैसे,
और बहुत कुछ कम है
इसी ग़म में आज,
दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा


ज़मीन--सहर देखि,
आसमान--शब् ना देखा
हमारी सेहर--शाम कैसी बीती,
हमनें ये तक ना देखा
इसी ग़म में आज,
दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा


जहाँ में है कामयाब लोग,
हम तो सदा के नाकामयाब है
हर कोई है सिकंदर मुक़द्दर का,
अपना तो नसीबा ही खराब है
इसी ग़म में आज,
दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा


था मैं नन्हा सा तारा,
हर ग़म से था अंजाना
क्यूँ हुआ मैं जवाँ,
खो गया वो बचपन सुहाना
इसी ग़म में आज,
दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा


इन बादलों से गूँजती है,
आवाज़ मेरे दर्द की
कराहती है ज़मीन भी,
रोता है फ़लक भी.
इसी ग़म में आज,
दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा


ज़हर के प्याले हैं मेरे लिए,
कहीं कोई जाम तो होगा नहीं
आग़ाज़ ही बदतर था मेरा,
अंजाम क्या होगा सही
इसी ग़म में आज,
दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा


मोहब्बत की झुकी थी डाल,
वो अब तन गयी हैं क्यूँ
फूल जो खिले थे कभी राहों में,
वो अब शूल बन गये है क्यूँ
इसी ग़म में आज,
दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा


ये रंज--ग़म की स्याहियाँ,
ये ज़िन्दगीभर की उदासियाँ
समाता चला हूँ मैं खुद में,
इस दिल की कईं परेशानियाँ.
इसी ग़म में आज,
दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा


कौनसा गुनाह किया था मैंने,
बता खुदा तेरा
ये बदतर ज़िन्दगी दी मुझे,
बददुआ दूँ या शुक्रिया अदा करू तेरा
इसी ग़म में आज,
दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा


फूल दुनियाँ में लोगों के लिए,
अपने लिए बस काँटे हैं
सबके नसीब में खुशियाँ है,
अपने तो दिन ही कहाँ आते हैं
इसी ग़म में आज,
दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा


ज़िन्दगी से नहीं रहा है प्यार,
चैन की नींद भी नहीं आती
मरना तो हम भी चाहते है मगर,
कमबख्त ये मौत ही नहीं आती
इसी ग़म में आज,
दिल तू शराब,
पिये जा, पिये जा.


_____ हाफ़िज़





ज़ख्म

तमाम जिस्म में,
फूल का एक निशान मिला
मगर वो सर से पाँव तक,
लहूलुहान मिला

जीवन

हर दिल में आस हैं जीने की,
समृद्ध सुखी ऐसा एक जीवन
जिसमें ना हो कोई भी दुःख,
ना दर्दभरा कोई भी मन

पर अक्सर मानव भूले हैं,
जो देता है सो सुखी रहे
और ये भी वो ना याद रखे,
कि लेनेवाला आह भरे

क्या कहना इस मानव मन का,
इस में लोभ पाप है भरे हुए
हर मन में भ्रष्टाचार भरा,
इस अँधकार में खड़े हुए.

अगर याद रहे छोटी कुछ बातें,
सुख में बीती कुछ यादें
तो जान पड़े हम सबको कि,
क्या इस सबसे हम सुखी हुए

सेवा में ही सुख मिलता है,
सेवा से ही दुःख मिटता है
सेवा सबका ही कष्ट हरे,
सेवा ही जीवन सफल करे

सेवा से जीवन सफल बना,
जीवन में पाप कभी करना
चाहे तू स्वर्ग में दास रहे,
पर नर्क में राज कभी मत करना.

_____ अज्ञात कवी


.......उसे इन्सान कहते हैं

इन्सान

किसी के काम जो आये,
उसे इन्सान कहते है
पराया दर्द अपनाए,
उसे इन्सान कहते है

कभी धनवान है कितना,
कभी इन्सान निर्धन है
कभी सुख है कभी दुःख है,
इसी का नाम जीवन है
जो मुश्किल में घबराए,
उसे इन्सान कहते है
किसी के काम जो आये,
उसे इन्सान कहते है

ये दुनियाँ एक उलझन है,
कहीं धोका, कहीं ठोकर
कोई हँस-हँसके सहता है,
कोई सहता है रो-रोकर
जो गिरकर फिर संभल जाए,
उसे इन्सान कहते है
किसी के काम जो आये,
उसे इन्सान कहते है

कभी सदगुण हँसाते है,
कभी भूलें सताती है
भला है भूल होना,
कभी वो हो ही जाती है
जो कर ले ठीक गलती को,
उसे इन्सान कहते है
किसी के काम जो आये,
उसे इन्सान कहते है

यूँ भरने को तो दुनियाँ में,
पशु भी पेट भरते है
रखे इन्सान का दिल जो,
वही परमार्थ करते है
खुद जो बांटकर खाये,
उसे इन्सान केहते है।
किसी के काम जो आये,
उसे इन्सान केहते है.

_____ अज्ञात कवी

दीवाने कईं .......

एक दीवाने को आये हैं,
समझाने कईं।
पहले मैं दीवाना था,
अब हैं दीवाने कईं.

Tuesday, May 25, 2010

कुछ चुनिन्दा शेर.....

दोस्तों,
हुस्न की बेवफ़ाई पर कुछ अनजान शायरों के चुनिन्दा शेर आपकी ख़िदमत में हाज़िर है


) हमी को क़त्ल करते हैं,
हमी से वो पूछते हैं
शहीद--नाज़ बताओ तो,
मेरी तलवार कैसी है

) ना खंजर से पूछो,
ना कटार से
मेरा दिल कैसे कटा,
पूछो मेरे प्यार से.

) शायद किसी राही को,
छाँव की ज़रूरत हो
इसी वास्ते दोस्त,
हम धुप में चलते हैं.

) हमने काँटों को भी,
नरमी से छुआ है लेकिन,
पर लोग बड़े बेदर्द है,
फूलों को मसल देते है.

) आसमान तेरे,
खुदा का नहीं है खौफ
डरते हैं ज़मीन,
तेरे इन्सान से हम

) लुटते अगर खिज़ा में,
तो कुछ बात ही थी
हमें तो रंज ये है कि,
लुट गये हम बहार में

) इंसानियत कि रौशनी ,
गुम हो गयी कहाँ
साये हैं आदमी के,
पर आदमी कहाँ

) काश होते शमा,
जलते बस एक शब्
हम तो आशिक हैं,
उम्रभर जलते रहेंगे.

) एश कि छाँव हो या ग़म कि धुप,
ज़िन्दगी को कहीं पनाह नहीं
एक विरान राह है दुनियाँ,
जिसमे कोई कयामगाह नहीं.
( कयामगाह - विश्रामगृह)

१०) ज़हरे-अफ्सुर्दगी से मरता है,
गमे-बेचारगी से मरता है
मौत पर तो है मुफ्त कि तोहमत,
आदमी ज़िन्दगी से मरता है.



Friday, May 7, 2010

कौन हो तुम

कौन हो तुम

मेरी
साँसों में हो तुम,
दिल की धड़कन में हो तुम
दिल-ओ-दिमाग में हो तुम,
मेरी नस-नस में हो तुम
सिर्फ एक बार बता दो,
कौन हो तुम

कभी मेरे बिलकुल करीब हो तुम,
तो कभी मुझसे कोसो दूर हो तुम
कभी बिजली काय कड़कती आवाज़ हो तुम,
तो कभी संगीत का मीठा सुर हो तुम
सिर्फ एक बार बता दो,
कौन हो तुम

कभी मुझसे वाकिफ़ हो तुम,
कभी मुझसे अनजान हो तुम
तुम्हारे बिन मैं कभी जी नहीं सकता,
जीउँ भी तो कैसे मेरी जान हो तुम
सिर्फ एक बार बता दो,
कौन हो तू


_____ हाफ़िज़


Wednesday, May 5, 2010

रात

रात

जिसमे
नहीं बिलकुल उजाला,
ऐसी ये अँधेरी रात
उलझन में पद गया हूँ ,
है ये कैसी राज़ की बात

कोई देता तनख्वाह तुझे,
फिर भी करती आने में देरी
ग़ज़ब की वफादार है तू,
वल्लाह, दाद देनी पड़ेगी तेरी

तेरे आने से चाँद जगमगाये,
आने पर तेरे, तारे झिलमिलाये
जब-जब तू दिनियाँ पर छाये,
बागों में रातरानी खिल जाए

तू तो वो खुशनसीब है,
जो दो दिलो-जिस्मों को एक करते है
तेरा साथ लेकर ही दुनिया में,
दो दिल ज़िन्दगी की पहेल करते है

जब-जब मैं तुझे देखता हूँ,
बस तुझे ही देखते रहता हूँ
दुनियाँ में काली होकर भी हसीन रात,
मै तुझे दिल से सलाम करता हूँ

_____ हाफ़िज़


नशा

एक हम है की खुद नशे में है,
एक तुम हो की खुद नशा तुम में है

_____ हाफ़िज़

मेरे साथ चल

तुझे दुनिया की सैर कराऊँ,
थाम के मेरा हाथ चल
ज़मीं पर तो बहोत चल चुकी हो,
आज आसमाँ पे मेरे साथ चल

_____ हाफ़िज़

तलाश

जिंदगीभर ढूंढता रहा,
तलाश मेरी ख़त्म हुई
जिंदगीभर क्या ढूंढता रहा,
यही मुझको खबर हुई

______ हाफ़िज़

प्यार की मूरत

खूबसूरती, शर्मो-हया
की सूरत कैसी होगी
मोहब्बत के सांचे में ढली,
चाहत की मिट्टी से बनी
सोचो तो दोस्त,
प्यार की मूरत कैसी होगी

_____ हाफ़िज़

निगाहें

एक हम है की निहाहें,
मिलाने को तरसते हैं
एक वो है जो निगाहें,
चुराके हँसते हैं

_____ हाफ़िज़

जी चाहता है

जी चाहता है
तुम्हारी ज़ुल्फों की घनी छाँव में,

गहरी नींद सोने को जी चाहता है
माथे की बिंदिया को तुम्हारी,
सुबह का सूरज बनाने को जी चाहता है

आँखों के कजरे को तुम्हारी,
काली घटा बनाने को जी चाहता है
झील सी आँखों में तुम्हारी,
कहीं डूब जाने को जी चाहता है

झुकती हुई पलकों को तुम्हारी,
ढलती शाम बनाने को जी चाहता है
गालों की लाली से तुम्हारी,
फूलों को रंग देने को जी चाहता है

नाज़ुक तुम्हारे होंठों को,
फूलों की पंखुडियां बनाने को जी चाहता है
इन होठों के रस को तुम्हारे,
जाम बनाकर पीने को जी चाहता है

बदन की खुशबू को तुम्हारी,
साँसों में बसाने को जी चाहता है
पायल की छम-छम को तुम्हारी,
मेरे संगीत की झंकार बनाने को जी चाहता है

चूड़ियों की खन-खन को तुम्हारी,
दिल की धड़कन बनाने को जी चाहता है
तुम्हारे जैसी हसीना को तो,
हरदम अपनाने को जी चाहता है.

_____ हाफ़िज़