Thursday, April 29, 2010

इश्क़

इश्क का खेल आम है लेकिन,
इश्क--सादक जहाँ में आम नहीं

हर तरफ मै ही मै छलकती है,
मस्त यक्सर करे जो जाम नहीं

हुस्न की हो रही है रुसवाई,
इश्क को अपना एहतराम नहीं

आओ आदाब--इश्क फिर सीखें,
सच्ची उल्फत हवस का नाम नहीं

इश्क में अपना खोना है सब कुछ,
साज़--सामाँ से कोई काम नहीं

फिर मिटाना है अपना नाम--निशाँ,
ग़ैर--मोहब्बत कोई नाम नहीं

इससे आगे है इक मकाम ऐसा,
जिसका कोई निशान--नाम नहीं

मस्तियाँ वहाँ बरसती रहती है,
खुम के खुम एक-आध जाम नहीं

_____ हाफ़िज़




शाहराए इश्क़

जलाके राख़ कर अब मेरे सब ख़यालों को,
ख़याल तेरा ही बस मेरे सर में रहे
कशिश ये हुस्न--बुतां जिससे मांग लाया है,
वही जमाल--हकीकी मेरी नज़र में रहे
तेरा ही ज़ोर रहे मेरे दस्तो बाज़ू में,
तेरी ही क़ुव्वते परवाज़ बालों पर में रहे
मुझे दिखा दे तू शाहराए इश्क़ दोस्त,
कि सुबहो शाम मेरा हर कदम सफ़र में रहे

_____ हाफ़िज़

दूर चले गये....

उन्होंने ना समझा हमारे प्यार को,
हम ही इश्क में डूबते चले गये।
हम जितने उनके करीब जाने लगे,
वो उतने ही हमसे दूर चले गये।

____ हाफ़िज़

दिल के फूल

ये बगिया के फूल ऐसे,
बोये जहाँ उगे वहीं।
ये दिल के फूल ऐसे,
बोये कहीं उगे कहीं।

____ हाफ़िज़

Monday, April 26, 2010

वक़्त.....

मुखालिफ़ वक़्त हो तो,
काम बन बनकर बिघड़ता है
सफ़ीना जा पड़ा मझधार में,
टकराके साहिल से


____ हाफ़िज़

वक़्त

मैं नहीं पूछता वक़्त,
ढायेगा तू सितम कितने
मुझे इतना तो बता दे फ़क़त,
आखिर चाहिए तुझे ज़खम कितने

____ हाफ़िज़