मुखालिफ़ वक़्त हो तो,
काम बन बनकर बिघड़ता है।
सफ़ीना जा पड़ा मझधार में,
टकराके साहिल से।
____ हाफ़िज़
Monday, April 26, 2010
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दोस्तों, मैंने अब तक जितनी भी ग़ज़लें, शेर-ओ-शायरी की है, सब आपकी खिदमत में हाज़िर कर रहा हूँ। उम्मीद है की आप लोगों को इस नाचीज़ का, ये मोहब्बतभरा नज़राना यकीनन पसन्द आएगा। आपका, हाफ़िज़
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