तुम सामने बैठी रहो,
तुम्हारा हुस्न पीता रहूँ।
मौत आ गयी जो दरमियाँ,
मरकर भी मैं जीता रहूँ।
तुम्हारा हुस्न पीता रहूँ।
मौत आ गयी जो दरमियाँ,
मरकर भी मैं जीता रहूँ।
_____ हाफ़िज़
दोस्तों, मैंने अब तक जितनी भी ग़ज़लें, शेर-ओ-शायरी की है, सब आपकी खिदमत में हाज़िर कर रहा हूँ। उम्मीद है की आप लोगों को इस नाचीज़ का, ये मोहब्बतभरा नज़राना यकीनन पसन्द आएगा। आपका, हाफ़िज़
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