ज़िन्दगी में मेरी कभी न खिला एक फूल,
बंजर था बंजर ही रह गया।
बन सका न मैं कभी नयी इमारत,
खंडर था खंडर ही रह गया।
_____ हाफ़िज़
बंजर था बंजर ही रह गया।
बन सका न मैं कभी नयी इमारत,
खंडर था खंडर ही रह गया।
_____ हाफ़िज़
दोस्तों, मैंने अब तक जितनी भी ग़ज़लें, शेर-ओ-शायरी की है, सब आपकी खिदमत में हाज़िर कर रहा हूँ। उम्मीद है की आप लोगों को इस नाचीज़ का, ये मोहब्बतभरा नज़राना यकीनन पसन्द आएगा। आपका, हाफ़िज़
No comments:
Post a Comment